शब्द का अर्थ
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धनुःपट :
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पुं० [सं० धनुस्-पट् ब० स०] पयाल वृक्ष। चिरौंजी का पेड़। |
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धनुःशाखा :
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पुं० [सं० धनुस्-शाखा ब० स०] पयाल वृक्ष। |
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धनुःश्रेणी :
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स्त्री० [सं० धनुस्-श्रेणी, ष० त०] १. मूर्वा। मुर्रा। २. महेन्द्र-वारुणी। |
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धनु :
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पुं० [सं०√धन (शब्द)+उ] १. धनुष। चाप। कमान। २. चार हाथ लंबी एक पुरानी नाप। ३. किसी गोलाकार क्षेत्र का आधे से कम भाग जो धनुष के आकार का होता है। ४. ज्योतिष की बारह राशियों में से नवीं राशि, जिसके अंतर्गत मूल और पूर्वाषाढ़ नक्षत्र तता उत्तराषाढ़ा का एक चरण आता है। इसे तौक्षिक भी कहते हैं। ५. फलित ज्योतिष में एक लग्न। ६. हठ योग में, एक प्रकार का आसन। ७. पयाल वृक्ष। ८. नदी का रेतीला किनारा। |
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धनुआ :
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पुं० [सं० धन्वन्, धन्वा] [स्त्री० अल्पा० धनुई] १. धनुष। कमान। २. धनुष के आकार का वह उपकरण जिससे धुनिए रूई धुनते हैं। धुनकी। धन्वा। |
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धनुई :
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स्त्री० [सं० धनु+ई (प्रत्य०)] १. छोटा धनुष। २. धुनकी।a |
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धनुक :
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पुं० [सं० धनुष] १. कमान। धनुष। उदा०—भौहें धनुक साँधि सर फेरी।—जायसी। २. इंद्रधनुष।a |
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धनुकना :
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स०=धुनकना।a |
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धनुक-बाई :
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स्त्री० [हिं० धनुक+बाई] लकवे की तरह का एक वायु रोग जिसमें जबड़े आपस में सट जाते हैं और मुँह नहीं खुलता। |
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धनु-पानि :
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पुं० [सं० धनुष्+पाणि=हाथ] १. वह जिसके हाथ में धनुष हो। २. धनुर्द्धर। रामचन्द्र।b |
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धनुर्गुण :
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पुं० [सं० धनु—गुण, ष० त०] धनु की चोरी। पतंचिका। चिल्ला। |
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धनुर्गुणा :
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स्त्री० [सं० धनुस्-गुण ब० स०, टाप्] मूर्वा। मरोड़-फली। |
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धनुर्ग्रह :
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पुं० [सं० धनुस्√ग्रह् (पकड़ना)+अच्] १. धनुष-चलानेवाला योद्धा। २. धनुर्विद्या। ३. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। |
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धनुर्द्धर :
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पुं० [सं० धनुस्√धृ (धारण)+अच्] १. धनुष धारण करने वाला और चलाने वाला व्यक्ति। कमनैत। तीरंदाज। २. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। |
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धनुर्द्धारी (रिन्) :
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वि० [सं० धनुस्√धृ+णिनि] [स्त्री० धनुर्द्धारिणी] धनुष धारण करने वाला। पुं० [सं०] धनुष रखने और चलानेवाले योद्धा। |
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धनुर्द्रुम :
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पुं० [सं० धनुस्-द्रुम, ष० त०] बाँस। |
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धनुर्भृत् :
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पुं० [सं० धनुस्√भृ (धारण+क्विप्] धनुष धारण करनेवाला योद्धा। |
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धनुर्मुख :
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पुं० [सं० धनुस्-मख, मध्य० स०] धनुर्यज्ञ |
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धनुर्माला :
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स्त्री० [सं० धनुस्-माला, ष० त०] मूर्वा। मरोड़फली। |
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धनुर्यज्ञ :
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पुं० [सं० धनुस-यज्ञ, तृ० त०] १. प्राचीन भारत का एक प्रकार का उत्सव जिसमें धनुष का पूजन तथा उसे चलाने की प्रतियोगिता होती थी। २. उक्त प्रकार का वह समारोह जो जनक ने सीता के स्वयंवर के समय किया था। |
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धनुर्यासा :
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पुं० [सं० धनुस्-यास्, उपमि० स०] जवासा। |
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धनुर्लता :
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स्त्री० [सं० धनुस्-लता, उपमि० स०] सोमलता। |
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धनुर्वक्त्र :
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पुं० [सं० धनुष्-वक्त्र, ब० स०] कार्तिकेय के एक अनुचर का नाम। |
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धनुर्दात :
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पुं० [सं०] १. एक प्रकार का वायु रोग, जिससे शरीर धनुष की तरह झुककर टेढ़ा हो जाता है। २. धनुक-बाई नामक रोग। ३. शरीर के घाव या व्रण के विषाक्त होने पर होनेवाला उक्त रोग। धनुष टंकार। (टिटैनस) |
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धनुर्विद्या :
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स्त्री० [सं० धनुष्-विद्या ष० त०] धनुष चलाने की विद्या। तीरंदाजी। |
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धनुर्वृक्ष :
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पुं० [सं० धनुस्-वृक्ष ष० त०] १. धामिन का पेड़। २. बाँस। ३. भिलावाँ। ४. पीपल का वृक्ष। |
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धनुर्वेद :
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पुं० [सं० धनुष्-वद ष० त०] यजुर्वेद का उपवेद जिसमें विशेष रूप से धनुष चलाने की विद्या का निरूपण है। |
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धनुष (स्) :
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पुं० [सं०√धन् (शब्द)+उस्] १. अर्ध गोलाकार का एक उपकरण जो बाँस या लोहे के लचीले डंडे को झुकाकर और उनके छोरों के बीच डोरी या ताँत बाँधकर बनाया जाता है। और जिसपर तानकर तीर दूर फेंका जाता है। कमान। २. दूरी की चार हाथ की एक पुरानी नाप। ३. रहस्य संप्रदाय में, परमात्मा का ध्यान। ४. हठयोग का एक आसन। ५. चिरौंजी का पेड़। पयाल। |
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धनुष-टंकार :
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पुं० [सं०] १. धनुष की प्रत्यंचा के हिलने से होने वाला शब्द। २. एक घातक रोग जिसमें व्रण आदि के विषाक्त होने पर शरीर अकड़कर धनुष के समान टेढ़ा हो जाता है। धनुर्वात। (टिटैनस) |
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धनुष-यज्ञ :
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पुं० =धनुयज्ञ। |
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धनुष्कोटि :
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पुं० [सं०] रामेश्वर से दक्षिण पूर्व का एक स्थान, जहाँ समुद्र में स्नान करने का माहात्म्य है। |
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धनुष्मान (ष्मत्) :
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पुं० [सं० धनुष+मतप्] उत्तर दिशा का एक पर्वत। (बृहत्संहिता) |
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धनुस :
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पुं० =धनुष। |
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धनुस्स्वन :
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पुं० [सं०] धनुष की टंकार। |
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धनुहाई :
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स्त्री० [हिं० धनु+हाई] १. धनुष से तीर चलाने की कला या विद्या। २. तीर-धनुष से होनेवाला युद्ध या लड़ाई। |
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धनुहिया :
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स्त्री०= धनुही।a |
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धनुही :
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स्त्री० [हिं० धनु+ही (प्रत्य०)] लड़कों के खेलने की छोटी कमान।a |
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